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Showing posts from April, 2018
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आज हम हैवानियत के किस स्तर पर खड़े है, वह कल्पनातीत है. इंदौर शहर के मुख्य बाजार राजबाड़ा में 4 माह की दुधमुँही मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म रौंगटे खड़े कर देने वाली घटना है. आए दिन इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति और पुलिस तथा कानून व्यवस्था का लचर होना मेरे मन में कई प्रश्नों को जन्म देता है.मुझे तो यह समझ नहीं आता कि आखिर वो कौन की जिस्मानी भूख है, जो इन दरिंदों को हैवानियत के उस स्तर तक ले जाती है, जिसमें उन्हें बच्चों और बड़ों में कोई फर्क नहीं आता. इस घटना के बारे में विश्लेषण करने पर तो मुझे यही समझ आता है कि ये घटना बदले या खीझ के परिणामस्वरूप घटित हुई है क्योंकि किसी दुधमुँही बच्ची से दुष्कर्म करने का परिणाम आरोपी स्वयं ही जानता होगा. उस बच्ची को तो अपने शरीर के उन अंगों का भी बोध नहीं होगा, जो उसे लड़की या लड़का बनाते है. उसे प्यार व पशुता के बीच क्या भेद होता है, इसका भी ज्ञान नहीं था. कई दिनों से मेरे मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या अब इस देश में बेटी के रूप में पैदा होना ही गुनाह है या फिर दो माओ जितनी सुरक्षा और प्यार देने का दावा करने वाले मामा के राज्य में बेटियाँ महफूज़
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जम्मू- कश्मीर के ￰कठुआ में 8 वर्षीय आसिफा के साथ हवस के भूखे जानवरों ने जो दरिंदगी की, उसे बयां करने के लिए मेरे पास उच्चस्तरीय गंदे, अश्लील और घटिया शब्द नहीं है. माफ़ कीजिएगा पर इन बलात्कारियों को मैं तो जानवर कहकर ही सम्बोधित करुँगी. सच कहा जाए तो देवस्थान जैसी पवित्र जगह को अपनी हवस का अड्डा बनाने वाले बलात्कारियों को हिंदू या मुस्लिम तो दूर इंसान कहलाने का भी अधिकार नहीं है. ये लोग किसी भी धर्म विशेष के साथ ही मानवता को भी शर्मसार करने वाले दरिंदे है.         महज 8 साल की नन्ही मासूम बच्ची को अगुवा कर उसे नशीली दवा पिलाकर उसके जिस्म को नोचना, लगातार 4-5  दिन तक कई दरिंदों द्वारा भूख से व्याकुल और दर्द से सिहरती बच्ची के जिस्म का बर्बरतापूर्वक भक्षण करना और फिर उसके गले में दुपट्टा कसकर उसकी सांसे उखाड़ देना ....इतना ही नहीं इसके बाद सिर पर पत्थर पटक- पटककर उसकी लाश के साथ भी अमानवीयतापूर्ण कृत्य करना....सच कहू तो ये सब सोचकर ही मेरा मन सिहर उठता है.... आखिर ये कैसी भूख है, जो एक वयस्क और बच्ची में विभेद नहीं करती? क्या जिस्म की ये भूख इंसानी दरिंदों को इतना कामुक कर देती है कि व
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 रतलाम में हल्ला गुल्ला साहित्य मंच हे मालवी बोली व जल संरक्षण विषय पर संगोष्ठी दि सफायर स्कूल परिसर में राखी. अणी आयोजन में गीनिया-चुनिया पण हउ-हउ कवि, विचारक और मालवीप्रेमी लोक्का भेरा विया. कार्यक्रम संचालन रो काम संजय जोशी जी ए मने दिदो थो. अणी वस्ते मैं म्हारे नीचे बई गी ने एक-एक करी ने सबने बुलायो. सबसे पेला मैं बुलायो अपणा मंच रा कुमार विश्वास अलक्षेन्द्र व्यास जी ने. व्यास जी ए पेला तो सरस्वती माताजी पे अपणी कविता 'शत-शत वंदन, माँ अभिनंदन हुनई'. विका बाद वरिष्ठ कवि आज़ाद भारती जी ए मालवी में अपणी बढ़िया दो- तीन कविता हुनई. वणा ए 'कहाँ खो गया गांव ये मेरा, उसको ढूँढू गली-गली' हुनई. गहन-गंभीर आज़ाद जी रा दमदार परिचय रा बाद में आई गी बारी आई जे.सी.गौर साहब री. हसमुख स्वभावी गौर सा ए 'ओ पनिहारिन देखो, पनघट सगळा सुखी गया है' कविता हुनई ने पानी री कमी रा हंडे -हंडे विलुप्त होती मालवी बोली पर भी अपणा विचार राखिया.   अब बारी आई तृप्ति सिंह बेन री. आज री अणि कार्यक्रम री मेज़बानी करवा वारी तृप्ति जी हे घणा कम पण सारगर्भित शब्दा में पाणी वचावा री वात कई दी. &