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Showing posts from December, 2014

रक्तरंजित हुआ शिक्षा का मंदिर

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खिलौना बन गए खिलौनों से खेलने वाले -           -  गायत्री शर्मा यह ‘तालिबानी आतंक’ की पाठशाला ही है, जिसमें निर्ममतापूर्ण तरीके से जिहाद के चाकू से इंसानों की खालें उधेड़ी जाती है, मानवीय संवेदनाओं को कट्टरता की आग में पकाया जाता है, इंसानों को इंसानों का खून पिलाया जाता है और इस तरह कई अग्निपरिक्षाओं के बाद तैयार होता है इंसान के भेष में आतंक का वह ‘खुँखार जानवर’, जो दुनियाभर में विंध्वस का कारक बनता है। खूँखार आतंकियों द्वारा जानवरों की तरह स्कूली बच्चों के सिर काटने व उन्हें गोलियों से भूनने की पेशावर के आर्मी स्कूल की नृशंस घटना इंसानियत के चिथड़े उड़ाती हैवानियत का वह अति क्रूरतम रूप है, जिसकी जितनी आलोचना की जाएं वह कम है। यह घटना कट्टर आतंक के अट्टाहस के रूप में दुनिया के सभी देशों के लिए एक चेतावनी भी लेकर आई है कि यदि आप आंतक के खिलाफ आज न जागे तो हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिए जाओगे। आतंक की यह कैसी भाषा है, जिसमें जिंदगी बचाने वाले को ‘हैवान’ और जिंदगी छीनने वाले को ‘खुदा’ माना जाता है? बच्चों को स्कूल भेजने की वकालत करने वाली पाकिस्तान की मलाला के अपने ही द

पेशावर में पाक रोया ....

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-           गायत्री शर्मा हर आँख नम है, हर सीना छलनी है मासूमों पर कहर बन बरपी यह कैसी दहशतगर्दी है? जिहाद की आग आज मासूमों को जला गई बुढ़ापें की लाठी अचानक बूढ़े अब्बू के कंधों पर ताबूत चढ़ा गई रक्तरंजित हुई मानवता हैवानियत दहशत बरपा गई नन्हों की किलकारियाँ आज मातम का सन्नाटा फैला गई कोसती है माँ, क्यों भेजा उसे स्कूल? भेज दिया तो ये आफत आ गई जिसके लिए की थी दुआएं पीर-फकीरों से आज मौत उन दुआओं को पीछे छोड़ आगे आ गई   माँ-बेटे का संवाद – अम्मी-अब्बू बुलाते हैं बेटा तुम्हें चल उठ, हम तेरी जिद पूरी कराते हैं जिस खिलौने के लिए रोता था तू रोज़ तुझे आज अब्बू वो खिलौना दिलाते हैं पर ये क्या, मेरा नन्हा तो खुद ही खूबसूरत खिलौना बन गया है? सुनो, खामोश है क्यों लब इसके,   क्या ये फटी आँखों से कुछ बोल रहा है?    आज न जाने क्यों भारी है छाती मेरी ममता के दूध अचानक आँचल भिगो रहा है आ बेटा, कुछ देर गोद में आकर सो जा मीठी थपकियों वाला पालना तेरी बाट जोह रहा है   बच्चे की लाशें देखने पर – दहशतगर्दों ने ये क्य

जागिएं और आवाज़ उठाइएं

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-           गायत्री शर्मा  जहाँ मौजूदा माहौल से छटपटाहट होती है वहीं परिवर्तन के कयास लगाए जाते हैं। मौन धारण करने से या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से हमें कुछ हासिल नहीं होने वाला। जब तक हमें अपने अधिकारों की जानकारी, कर्तव्यों का भान और न्याय पाने की छटपटाहट नहीं होगी। तब तक इस देश की तस्वीर नहीं बदलेगी। आज ‘मानव अधिकार दिवस’ है। कानून द्वारा प्रदत्त मानव अधिकारों के प्रति जागरूक होने का दिन। आइएं आप और हम आज मिलकर शुरूआत करते हैं अपने अधिकारों को जानने की और ज़मीनी हकीकत में घटित हो रही मानव अधिकारों के हनन की कुछ घटनाओं से सबक लेने की।    आज हम अपने सफर की शुरूआत करते हैं सरकारी योजनाओं, धार्मिक चैनलों में चमकने वाले बाबाओं और कुछ भ्रष्ट बाबूओं से। यह मेरे देश की तस्वीर ही है जहाँ नक्सलवाद नौनिहालों के हाथों में किताबों की जगह बंदूके थमा रहा है, जहाँ नवजात शिशु कटीली झाडि़यों में मौत के तांडव का रूदन गीत गा रहा है, जहाँ सरकारी शिविरों में नसंबदी ऑपरेशन महिलाओं की जिंदगी की नस काट रहा है और मोतियाबिंद का ऑपरेशन आँखों की रोशनी उम्मीदें छीन रहा है, जहाँ बाबाओं के आश्रम में स