‘मलाला’ है तो मुमकिन है ...

-          गायत्री शर्मा
नन्हीं आँखों से झाँकते बड़े-बड़े सपनें। ये सपनें है हिजाब में कैद रहने वाली पाकिस्तानी लड़कियों की शिक्षा के। ये सपनें हैं उन नन्हीं परियों की कट्टर कबिलाई कानून से आज़ादी के, जिनके सपनों में भी कभी आज़ादी की दुनिया नसीब न थी। तालिबानी आतंकियों के खौफ के बीच स्वात की मलाला ही वह मसीहा थी, जिसने डर के आगे जीत की नई परिभाषा गढ़ी। महात्मा गाँधी की तरह मलाला ने ‍भी हिंसा का जबाब अहिंसा से देकर दुनिया को यह दिखा दिया कि जब उम्मीदें हार मान जाती है। तब भी हौंसले जिंदा रहते हैं। यह मलाला के बुलंद हौंसले ही थे, जिसके चलते पाकिस्तानी लड़कियाँ अब लड़कों की तरह शिक्षा हासिल कर रही है। आज हम सभी के लिए यह सम्मान की बात है कि अशांति में शांति का संदेश फैलाने वाली मलाला को शांति के सर्वोच्च पुरस्कार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना गया है।
         
      कहते हैं नदी जब उफान पर होती हैं तब वह विशालकाय चट्टानों को भी फोड़ अपना रास्ता बना लेती है। जब मलाला के स्वर भी तीव्र वेग से बुलंद ईरादों के साथ प्रस्फुटित हुए, तब कट्टर तालिबानी फरमानों की धज्जियाँ उड़ गई और समूची दुनिया साक्षी बनी नन्हीं लड़की की आज़ादी की जिजिविषा की। अपने बुलंद हौंसलों की ऊँची उड़ान से मलाला ने नामुमकिन को मुमकिन बनाते हुए आतंक के साये में डरी-सहमी रहने वाली पाकिस्तानी लड़कियों के लिए शिक्षा के रूप में आज़ादी का मार्ग भी प्रशस्त किया। दुनिया के लिए मलाला मैजिकल इसलिए है क्योंकि मलाला ने उस देश में आज़ादी की एक नई इबारत लिखी, जिस देश में लड़कियों की आज़ादी कट्टर कानूनों के कायदों में जकड़ी होती है व उनका सुंदरता तथा माँसलता हिज़ाबों के पर्दों में ढँकी होती है। यहाँ औरतें बच्चे पैदा करने का एक जरिया होती है, जिनका जीवन पुरूषों की गुलामी व सपनें कायदे-कानूनों का अनुसरण करने में ही दम तोड़ देते हैं। मलाला जिस स्वात घाटी से आती है, वहाँ की तस्वीर तो उस वक्त बहुत ही भयावह थी, जब वर्ष 2009 में वहाँ तालिबानी आतंकियों का खौफ रहता था। मलाला ने उन दिनों आतंक के साये में लड़कियों की दम तोड़ती जिंदगीयों के दर्द को अपनी डायरी में हूबहूँ बँया किया।      
        

डायरी लेखन के साथ ही सोशल नेटवर्किंग साइट्स और सार्वजनिक मंचों से भी मलाला ने तालिबानी आतंकियों की कट्टरता, कबिलाई कायदें-कानून व खौफ का खुलासा किया। यह मलाला की आतंकियों से खिलाफत का ही नतीज़ा था कि लड़कियों की शिक्षा की वकालत करने वाली मलाला को 9 अक्टूबर 2012 को तालिबानी आतंकियों ने गोलियों का शिकार बनाया। उस वक्त हमले में गंभीर रूप से घायल मलाला की जिंदगी बचने की सारी उम्मीदें जब हार मान चुकी थी तब भी मलाला के बुलंद हौंसलों ने कौमा के रूप में नाउम्मीदी के कयासो के बीच भी उसे जिंदा रखा। आतंकियों के इस हमले ने मलाला के हौंसले को तोड़ने के बजाय उसे अपनी लड़ाई को दोगुनी तेजी से लड़ने की ऊर्जा दी। यह वहीं दिन था जिसके बाद न तो मलाला ने कभी पीछे मुड़कर देखा और न ही आतंकियों ने कभी मलाला को पीछे मुड़कर देखा।        
                 
पने शब्दों के मैजिक से पाकिस्तान में लड़कियों की आज़ादी के स्वप्न को हकीकत बनाने वाली मैजिकल मलाला के सराहनीय कार्यों की बदौलत ही उन्हें अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार, पाकिस्तान का राष्ट्रीय युवा शांति पुरस्कार, वर्ष 2013 में संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार सम्मान, मैक्सिको का समानता पुरस्कार, साख़ारफ़ पुरस्कार आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। मलाला की पाकिस्तानी लड़कियों की आज़ादी व शिक्षा के लिए चलाई जाने वाली मुहिम आज भी जारी है। यह मलाला मैजिक ही है, जिसके बूते आज पाकिस्तानी लड़कियाँ न केवल बुनियादी शिक्षा हासिल कर रही है बल्कि अपनी जि़दगी अपने तरीके से जीने के लिए भी स्वयं को आज़ाद महसूस कर रही है। नोबेल पुरस्कार के लिए चयनित मलाला के इस जोश व जुनून को मेरा सलाम है, जिसने लड़कियों की आज़ादी पर सख्ती के अवरोध खड़े करने वाले पाकिस्तान को भी आज यह कहने पर मजबूर कर दिया कि मलाला हमारे देश की शान है।
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Comments

बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति ..
धन्यवाद कविता जी ...
Wasu said…
नन्हीं आँखों से झाँकते बड़े-बड़े सपनें।

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