'कृष्ण' को संचालित करने वाली शक्ति है - 'राधा'

- गायत्री शर्मा 
राधा और कृष्ण प्रेम मार्ग के पुल के वह दो आधार है, जिनके बगैर सृष्टि में प्रेम की कल्पना ही अधूरी है। लीलाधारी कृष्ण समूची सृष्टि को संचालित करते हैं और कृष्ण को, जो शक्ति संचालित करती है, वह परम शक्ति है – राधा रानी। राधा, प्रेम में पवित्रता की वह कस्तूरी है, जिसकी सुंगध से वशीभूत होकर कृष्ण व्याकुल हो उठते है और इसी व्याकुलता में जब कृष्ण अपने हृदय को स्पर्श करते हैं। तब उनके अधरों के साथ हृदय से भी राधे-राधे नाम ही स्पंदित होता है। वह ‘राधा’ नाम की कस्तूरी कृष्ण की आत्मा में महककर कृष्ण को ‘राधामय’ और राधा को ‘कृष्णमय’ बनाती है। कहने को ‘राधा’, कृष्ण’ एक-दूसरे से अलग है पर प्रेम के चक्षुओं से देखों तो कृष्ण ही ‘राधा’ है और राधा ही ‘कृष्ण’ है। 
       यह राधा के प्रेम की ऊष्णता ही है, जो चंचल, ठगोरे, बावरे नंद के लाला को ‘राधा’ से सदैव जोड़े रखती है और यह दुनिया प्रेम की इस मोहिनी मूरत को ‘राधा-कृष्ण’ नाम से पूजता है। कृष्ण पर आकर्षण व नियंत्रण सब राधा का ही है। राधा ऐसी ‘अलबेली सरकार’ है, जो हमारे सरकार यानि कि ठाकुर जी को भी मोहित व नियंत्रित करने की शक्ति रखती है। सरल शब्दों में कहा जाएं तो जगत में शाश्वत प्रेम का आधार स्तंभ ही राधा रानी है। राधा ने ही कृष्ण को अपने आकर्षण में बाँधकर कृष्ण के प्रेम में पूर्णता का पूर्णविराम लगाया। 

वृषभानु की लली राधिका रानी को उनके जन्मदिवस ‘राधाअष्टमी’ की हार्दिक शुभकामनाए। जय-जय श्री राधे ....   

राधा तू बडभागिनी, कौन पुण्य तुम कीन। 
तीन लोक तारन तरन, सो तोरे आधीन।।

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