जय हो बाबा इंटरनेट की ...

-          गायत्री शर्मा
तकनीक के इस युग में अपनी सुरक्षा अपने हाथों करते हुए हम निकल पड़ते है तीर-कमान और बंदूक की जगह मोबाइल और लैपटॉप लिए। जहाँ कहीं असुरक्षा का भाव हुआ, वहीं भेज दिया व्हाट्स एप्प पर दोस्तों को ग्रुप मैसेज और पलभर में लोगों की भीड़ जमा कर हो गए हम सुरक्षित। तनाव के कारण नींद नहीं आ रही है तो एफबी स्टेटस पर अपनी मनोदशा शेयर कर सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से हम जमाज जमा कर लेते हैं सहानुभूति देने वालों और नए-नए टोटके बताने वालों की। नया युग, सब कुछ नवीन तकनीक से संपन्न। इस युग में आदमी के जेब में पैसा मिले न मिले पर उसके मोबाइल पर इंटरनेट रिचार्ज जरूर मिलेगा। मोबाइल के मैमोरी कार्ड में सनी लियोनी का सेक्सी विडियों और यो-यो हनी सिंग का ‘आई स्वेयर छोटी ड्रेस में तू, बॉम्ब लग दी मेनू’ गीत जरूर मिलेगा। यह मायावी इंटरनेट देवता ही है, जिनके जलवे आज कम्प्यूटर, मोबाइल व लेपटॉप पर छा रहे हैं और लोग अपनी गर्लफ्रेंड व बी‍वियों की बजाय कम्प्यूटर व मोबाइल के साथ अधिक बतिया रहे हैं।  
इंटरनेट एडिक्शन के चलते अच्छा भला इंसान आज उल्लू बन गया है। जिसका प्रमाण यह है कि नए दौर के इंटरनेट प्रेमियों की गोद में घने काले केशों वाली घरवाली या गर्लफ्रेंड की बजाय अब देर रात तक मोबाइल व लैपटॉप आराम फरमाते हैं। नींद व खर्राटों की खर्रर् खर्रर् ... में उलझने पर भी ये उपकरण नजदीकी बढ़ाना नहीं छोड़ते और धीरे-धीरे अपने प्रियतम की चौड़ी छाती पर सवार हो जाते हैं। ऐसा करने के बाद तो शुरू हो जाती है इनकी वाइब्रेशन की ‘ड्रू ड्रू ...’ तथा नोटिफिकेशन की ‘टू-टू ...’ , जिसका सिलसिला रात 12 बजे से शुरू होकर सुबह 4 बजे तक बदस्तूर जारी रहता है।
          कहते हैं कि बड़े-बड़े नेत्र, खुले-खुले केश और ‘सुनोंऽऽऽऽ’ की घर्र्राती आवाज़ से पतियों को डराने वाली घरवाली के आगे बड़े-बड़े शेरदिल पति भी भीगी बिल्ली बन जाते हैं। पर ये क्या, आज ये सारे शेर सब्जीमंडी का रास्ता कैसे भटक गए है? अरे हाँ, याद आया। दिल में एफबी वाली गर्लफ्रेंड की प्रीत की हांडी को गरम रखने के लिए जनाब को सब्जीमंडी के सौ-सौ चक्कर लगाने भी बुरे नहीं लगते। तभी तो इंटरनेट से एकांत में बतियाने के लिए पति ‘नियम व शर्ते लागू’ कहते हुए अपनी घरवाली की सारी फरमाईशें पूरी कर देता है फिर चाहें वह बाजार से टमाटर, प्याज लाना हो या फिर घरवाली को सोने के कंगन दिलाना ही क्यों न हो। पत्नी की आज्ञा मानने के लिए इंटरनेट प्रेमी पतियों की एक ही मुख्य शर्त होती है – ‘हे देवी! रात को जब मैं ऑनलाइन रहूँ। तब तुम ऑफलाइन रहना और खामोशी से तकियें में अपना मुँह छुपाकर सो जाना। उस वक्त कोई बड़-बड़ या शक-सवाल नहीं।‘ ऐसे में भला घरवाली की क्या मजाल, जो आज्ञा की अवहेलना कर सोने के अंडे देने वाली मुर्गी से बैर करें। हाँ, यह जरूर है मौका मिलते ही ईष्यालु घरवाली अपने पति परमेश्वर के देर रात तक कम्प्यूटर से आलिंगन वाली बात लोगों के सामने उगल ही देती है। ऐसे में पति बेचारा क्या करें क्योंकि स्विच ऑफ करके कम्प्यूटर व मोबाईल का मुँह तो बंद किया जा सकता है पर इंटरनेट की ‘क ख ग’ से अपरीचित घरवाली का मुँह बंद करना बेहद ही मुश्किल है? यह इंटरनेट का जादुई आकर्षण ही है, जिसके लिए आजकल के युवा अपने घरवालों से झूठ बोलने, रजाई में छुप-छुपकर चेटिंग करने, अपने मोबाइल को दोस्त का मोबाइल बताने आदि से भी गुरेज नहीं करते हैं। हमारी रोजमर्रा की जिंदगी के ओर भी बहुत सारे किस्से है मोबाइल, इंटरनेट व लैपटॉप की तिकड़ी से जुड़े। फिलहाल तो इस मायावी इंटरनेट के आकर्षण को देखते हुए मेरे मुँह से तो यहीं वाक्य निकलता है - वाह रे तकनीक क्रांति के प्रणेता! तूने भी कमाल कर दिया। आदमी तो काम का था पर तूने उसे बेकार कर दिया।

सूचना : इस ब्लॉग से किसी भी सामग्री का प्रयोग करते समय साभार देवें व मुझे सूचनार्थ मेल अवश्य भेंजे। मेरे इस व्यंग्य लेख का प्रकाशन उत्तर प्रदेश के वाराणासी, इलाहबाद, लखनऊ, कानपुर, गोरखपुर, मेरठ एवं गाजियाबाद से प्रकाशित दैनिक 'जनसंदेश टाइम्स' के दिनांक 1 अगस्त 2014, शुक्रवार के अंक में संपादकीय पृष्ठ पर 'उलटबांसी' कॉलम में 'जय हो बाबा इंटरनेट की' शीर्षक से हुआ है। अखबार में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दि गई लिंक पर क्लिक करें - 

http://www.jansandeshtimes.in/index.php?spgmGal=Uttar_Pradesh%2FVaranasi%2FVaranasi%2F01-08-2014&spgmPic=9




Comments

Popular posts from this blog

महात्मा गाँधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में ब्लॉगरों का जमावड़ा

रतलाम में ‘मालवी दिवस’ रो आयोजन