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Showing posts from August, 2014

‘लव’ के नाम पर ‘जिहाद’ क्यों?

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-           गायत्री शर्मा   ‘लव जिहाद’ यानि कि ‘प्रेम युद्ध’, यह शब्द अब उत्तरप्रदेश के सियासी गलियारों से निकलकर दिल्ली की ज़ामा मस्जि़द में गूँज रहा है। उत्तरप्रदेश में चुनाव के मद्देनजर भगवाधारी जहाँ इसे प्रमुख चुनावी मुद्दा बना रहे हैं वहीं इस्लाम धर्मावलंबी इसे इस्लाम की छवि को धूमिल करने के लिए काल्पनिक रूप से गढ़े मुद्दे का नाम दे रहे हैं। इस मुद्दे में कितनी हकीकत है। यह तो हमें वक्त और तथ्य ही बताएँगे लेकिन यहाँ सवाल यह उठता है कि चुनावी माहौल में अचानक इस मुद्दे को और वह भी मुस्लिम बाहुल्य राज्य उत्तरप्रदेश में उठाया जाना कितना लाजि़मी है?      ‘लव जिहाद’ का सीधा अर्थ दुर्भावनावश किया गया प्रेम और विवाह है। हकीकत में हम इसे प्रेम भी नहीं कह सकते हैं क्योंकि प्रेम कभी भी इच्छा के विरूद्ध धर्मांतरण के नाप़ाक इरादे से नहीं किया जाता है। हाँ, यह ज़रूर हो सकता है कि प्रेम समाज के कड़े कायदों व कानून के शिंकजे से बचने के लिए स्वेच्छा से इस्लाम कबूल कर निकाह के रूप में विवाह करने की गली निकाल सकता है परंतु धोखाधड़ी के लिए जबरन धर्मांतरण कराना इसका भी मकसद नहीं होता है। यकी

कैसी हो तुम भैंस महारानी ?

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-            गायत्री शर्मा ‘ बाबूजी ,  जरा धीरे चलो ,  बिजली खड़ी ,  यहाँ बिजली खड़ी  ...’ ‘ दम’ की याना गुप्ता की तरह अब मंत्री जी की वीआईपी भैंसे भी दमदार ठुमके लगाकर यही गीत गा रही है। जी हाँ ,  आप सही सोच रहे हैं ,  यह वहीं यूपी है ,  जहाँ ससुरी भैंसन की सिक्यूरिटी में पूरा प्रशासनिक अमला लग जाता है और बेचारे आम आदमी को सुरक्षा के नाम पर ठेंगा दिखाया जाता है। यहाँ अपराधियों को पकड़ने में तो पुलिस सुस्ती दिखाती हैं पर मंत्री महोदय की गुम भैंसों को खोजने में उनकी रातों की नींद उड़ जाती है और आखिरकार कुत्तों की मदद से भैंसों को ढूँढने के बाद ही पुलिस राहत की सास लेती है। आपको क्या लगता है ?  ऐसा क्या है इन भैंसों में ,  जो इनकी अगुवाई के लिए सरकारी गाडि़याँ सायरन बजाते हुए आगे चलती है और कैटरीना कैफ सी नाजुक भैंसे हौले - हौले आरामदायक सफर का लुत्फ उठाती है। बुरा न लगे तो एक कड़वा सच कहूँ मंत्री जी !  यदि आपके राज में इसी तरह भैंसे वीआईपी बनती रही तो कहीं अतिशय भैंस प्रेम के कारण जनता आपको तबेले का रास्ता न दिखा दें।          सुनने में आया है कि नेताजी को भैंसों से ईश्क हो

कहाँ गुम हो गई बिजली ?

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- -           गायत्री शर्मा घोटालों के लिए विश्व प्रसिद्ध इस देश में प्रतिवर्ष किसी न किसी नए घोटाले से पर्दाफाश होता है। भारत की राजनीति में घोटालों की सड़ांध लागाने वाले राजनेताओं ने कभी चारा खाया तो कभी स्टाम्प में घपला किया, कभी टैक्स चोरी की तो कभी ये नेता देश की 193 कोयला खदानों को ही निगल गए। सिर से पाँव तक कोयले की कालिमा से रंगे राजनेता करोड़ों रुपयों के लालच में बेसुध बन सरकार के पास रिजर्व कोयले से बिजली आपूर्ति के उस महत्वपूर्ण गणित को लगाना तो भूल ही गए, जिससे देश के करोड़ों घरों की रोशनी हमेशा के लिए छिनने की नौबत आ गई। यही वजह है कि आज 1 लाख 86 हजार करोड़ रुपए के अनुमानित नुकसान के साथ कोयला घोटाला देश के अव्वल घोटालों में शुमार हो गया है।       सुबह का भूला भी थक हारकर शाम को घर लौट आता है पर बैरन बिजली तो आजकल बार-बार हमारे घरों का रास्ता भटकती जा रही है। कुछ पल का अँधेरा तो हम बर्दाश्त कर सकते हैं लेकिन जब अँधेरा कभी खत्म न होने की बुरी खबर लेकर आएँ तो उस अँधेरे में गुम रोशनी की कीमत हमें पता चलती है। जिस तरह प्यासा पानी की एक-एक बूँद के लिए तरसता है ठीक उसी त

कितने आज़ाद है हम ?

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-           गायत्री शर्मा 15 अगस्त, केवल तिरंगा फहराकर, राष्ट्रागान गाने का ही दिन नहीं है। यह दिन है देश की मौजूदा स्थिति में आम आदमी की आज़ादी पर चिंतन करने का। यह दिन है देश में भीतराघात करने वाले भ्रष्ट व दागी नेताओं से देश को आज़ाद करने का। यह दिन है पूरी तरह से आज़ाद होकर आज़ादी पर्व मनाने का। 15 अगस्त के दिन चौराहों पर लहराता यह वहीं तिरंगा है, जो किसी सैनिक के लिए कुरान, गीता, बाइबल व गुरू ग्रंथ साहिब के समान पवित्र है। जिसकी आन, बान, शान के लिए वह अपने प्राणों की आहूति देने से भी गुरेज नहीं करता, उस तिरंगे को आखिर हम कैसे उन भ्रष्ट नेताओं के हाथों में फहराने को दे सकते हैं, जो स्वयं भ्रष्टचार व अपराधों के दाग से इसे दागदार कर रहे हैं? आज आप स्वयं से यह प्रश्न कीजिए और सोचिए कि क्या हमारे देश में एक भी ऐसा ईमानदार आम आदमी नहीं है, जो देश के राष्ट्रध्वज तिरंगे को फहरा सके? क्या तिरंगे को फहराने के लिए राजनेता होना ही प्रमुख शर्त है या ‍क्या हमारे लिए राजनेता ही ईमानदार बेदाग व्यक्ति का परिचायक है?     आज़ादी का आपके लिए क्या अर्थ है? क्या अंग्रेजों की गुलामी से आजादी

विश्वास को बाँधती रेशम की डोर ...

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-  -   गायत्री शर्मा यहाँ रिश्तों का नहीं बल्कि भावों का मोल है। भाई और बहन के स्नेहिल रिश्तें में भाव ही तो अनमोल होते हैं। रक्षाबंधन के दिन भाई की कलाई पर बँधने वाली रेशम की फिसलन भरी डोर भी भावों की गाँठों से इतनी अधिक मजबूत हो जाती है कि उसकी हर एक गाँठ भाई-बहन को जन्म-जन्मांतर के अटूट बँधन से बाँध देती है। अपनी लाडली बहन पर दुनियाभर का प्यार लुटाने वाला भाई आज फिर रक्षाबंधन के बहाने अपनी बहन की रक्षा के संकल्प को दुहराता है और शुरूआत करता है उस मधुर रिश्तें की, जिसमें प्रेम है, विश्वास है, पवित्रता है और उससे भी कहीं ज्यादा सुरक्षा का अहसास है। हमारे यहाँ त्योंहार की फेहरिस्त बड़ी लंबी है पर उन सभी त्योंहारों को मनाने का मकसद अमूमन एक ही होता है और वह होता हैं – समाज में प्रेम, विश्वास, भाईचारा और रिश्तों की पवित्रता को बरकरार बनाएँ रखने का। इस आपाधापी भरी जिंदगी में यूँ तो हमें फुरसत नहीं है दुनियादारी के रिश्तों को निभाने की, पर ‘रक्षाबंधन’ एक ऐसा त्योंहार है, जिसमें हमारे पास दूरियों और व्यस्तताओं का बहाना नहीं होता। भाई की एक प्यार भरी पुकार पर उसकी बहन मीलों की दूरिया

बहन की रक्षा करने में कितने कामयाब हुए है हम?

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-           गायत्री शर्मा यह रिश्ता है प्रेम और विश्वास का, जिसमें औपचारिकताएँ गौण है और विश्वास सर्वोपरि। हम बात कर रहे हैं भाई-बहन के पवित्र रिश्तें की। जिसमें प्रेम की मधुर स्मृतियों को संजोने के लिए ‘रक्षाबंधन’ का पर्व मनाया जाता है और कलाई पर रेशमी धागा बाँधकर रक्षा का संकल्प लिया जाता है। यदि हम प्रतीकात्मक रूप में रक्षाबंधन को समझे तो रक्षा का संकल्प कोई भी ले सकता है फिर चाहें वह भाई हो, मित्र हो, पिता हो या फिर पति ही क्यों न हो। बशर्ते कि उस संकल्प में जिम्मेदारी का अहसास व संकट के समय रक्षा करने का माद्दा भी होना चाहिए। लेकिन बनावटी रिश्तों की हमारी जिंदगीयों में आज रेशमी धागों की चिकनी गाँठों की तरह भाई का बहन के लिए लिया गया रक्षा, प्रेम व विश्वास का संकल्प भी बहुत जल्द टूट जाता है और एक-दूसरे से औपचारिक व सामाजिक रिश्तें निभाकर भाई-बहन एक-दूजे से बेखबर बन फिर से अपनी अलग-अलग दुनिया में रम जाते हैं। यह जरूरी नहीं है कि रक्षाबंधन के दिन केवल भाई-बहन का रिश्ता ही जोड़ा जाएँ। हम चाहें तो मित्र, पति, भाई या पिता के किसी भी रिश्तें को रक्षा के मजबूत सूत्र से बाँध सकते

जय हो बाबा इंटरनेट की ...

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-           गायत्री शर्मा तकनीक के इस युग में अपनी सुरक्षा अपने हाथों करते हुए हम निकल पड़ते है तीर-कमान और बंदूक की जगह मोबाइल और लैपटॉप लिए। जहाँ कहीं असुरक्षा का भाव हुआ, वहीं भेज दिया व्हाट्स एप्प पर दोस्तों को ग्रुप मैसेज और पलभर में लोगों की भीड़ जमा कर हो गए हम सुरक्षित। तनाव के कारण नींद नहीं आ रही है तो एफबी स्टेटस पर अपनी मनोदशा शेयर कर सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से हम जमाज जमा कर लेते हैं सहानुभूति देने वालों और नए-नए टोटके बताने वालों की। नया युग, सब कुछ नवीन तकनीक से संपन्न। इस युग में आदमी के जेब में पैसा मिले न मिले पर उसके मोबाइल पर इंटरनेट रिचार्ज जरूर मिलेगा। मोबाइल के मैमोरी कार्ड में सनी लियोनी का सेक्सी विडियों और यो-यो हनी सिंग का ‘आई स्वेयर छोटी ड्रेस में तू, बॉम्ब लग दी मेनू’ गीत जरूर मिलेगा। यह मायावी इंटरनेट देवता ही है, जिनके जलवे आज कम्प्यूटर, मोबाइल व लेपटॉप पर छा रहे हैं और लोग अपनी गर्लफ्रेंड व बी‍वियों की बजाय कम्प्यूटर व मोबाइल के साथ अधिक बतिया रहे हैं।   इंटरनेट एडिक्शन के चलते अच्छा भला इंसान आज उल्लू बन गया है। जिसका प्रमाण यह है कि नए दौर के