कहाँ सो रहे है आप?

मेरे शब्दों को सूखा खा गया
भावों को सूरज निगल गया

माटी सूखे का मातम मना रही है
पेड़ों की हरियाली पर अब शुष्णता छा रही है

अब तो आँसू भी सूख-सूखकर रो रहे है
पानी बाबा आप कहाँ छुपकर सो रहे है?

- गायत्री   

Comments

बहुत बढ़िया!
शुक्रिया प्रभात जी।

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