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तुम कैसी हो ?

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मुट्ठी से फिसलती रेत सी चंचल कभी शांत जल सी गहन गंभीर तपती धूप में कराती हो तुम सुकून का अहसास लबों पर खामोशी आँखों से करती हो बातें अब समझने लगा हूँ मैं भी   इन ठगोरे नैनों की बानी   तुम्हारी अदाएँ इतनी प्यारी है अब बता भी दो प्रिये! तुम कैसी हो? - गायत्री  

क्या तू छलावा है?

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तू छलावा है या सच की आड में झूठ ज्यादा है हकीकत को झुठलाने का एक सच्चा सा लगता झूठा वादा है क्या सचमुच तू छलावा है? आँखे बंद करूँ तो सामने आ जाएँ खुली आँखों में दूर खड़ी मुस्कुराएँ तेरी कल्पनाओं में जिंदगी का मजा कुछ ओर ही आता है क्या सचमुच तू छलावा है? नींदे, यादें, सब कुछ तू ले गई जाते-जाते मीठी यादों का सहारा दे गई तेरी बातों को सोचकर तेरी तरह होंठ हिलाना मुझे बड़ा भाता है क्या सचमुच तू छलावा है? मेरी स्वप्न सुंदरी काश तू सामने होती कह देता मैं तुझे अपने दिल की बात हकीकत में तुझे अपना बना लेता फिर कहता कि तू छलावा नहीं मेरा साया है क्या सचमुच तू छलावा है? -           -  गायत्री 

रतलाम का मालवी दिवस, कवियों के साथ कवियों की बात

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कहते हैं जब मिठास मौखिक न्यौते में ही हो तो चिट्ठी-पत्री बगैर भी व्यक्ति मुकाम पर पहुँच जाता है। कुछ ऐसा ही न्यौता मुझे भी संजय जोशी जी द्वारा मालवी दिवस के कार्यक्रम का मिला। एक मौखिक निमंत्रण पर उसमें भी अपनत्व की मिठास, तो भला मैं क्यों न जाऊँ उस कार्यक्रम में? संजय जी के निमंत्रण पर 6 अप्रैल को मैं भी जा पहुँची इस कार्यक्रम के उसी पुराने ठिकाने यानि कि रतलाम के मेहँदीकुई बालाजी मंदिर परिसर के हॉल में।      पहले से सजी-सजाई कवियों की रेडिमेड महफिल में ‍मैं भी फिट होने के लिए तैयार थी। जिस तरह एक-एक बूँद से घड़ा भरता है। ठीक उसी तरह यह महफिल भी एक-एक आम कवि को खास बनाने के लिए दरवाजे की ओर टकटकी लगाएँ बैठी थी क्योंकि यहाँ देखों तो सबके सब कवि थे और मानों तो हर कवि एक श्रोता था। यह बात राज़ की बात है। जिसे आप अभी नहीं समझ पाओगे। हांलाकि महफिल को देखकर मेरे मन में बड़ा संशय था कि वहाँ मौजूद सभी विद्वतजनों की और खासकर संजय जी की अपेक्षाओं पर एक कवि के रूप में मैं खरा उतर पाऊँगी कि नहीं। लेकिन मन में विश्वास और हिम्मत जगाने के लिए मेरे भीतर की गायत्री स्वाभिमान से लबरेज थी, जो यह