म.प्र. विधानसभा चुनाव 2013 – मुद्दे, वादें और हकीकत (भाग – 2)

उपशीर्षक : रतलाम शहरी क्षेत्र त्रिकोणीय मुकाबला

इस बार मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों के चुनावी दंगल में कई खिलाड़ी अपना भाग्य आजमा रहे हैं। प्रदेश की 230 सीटों के लिए लगभग 2,383 नए-पुराने उम्मीद्वार अपने किस्मत के सितारे के चमकने की आस लगाएँ चुनावी मैदान में उतरे हैं। इनमें से कई खिलाड़ी तो अगूँठाछाप होते हुए भी राजनीति में अनुभवियों की गिनती में आते हैं। वहीं कई नए उच्च शिक्षित चेहरे भी युवाओं को लुभाने के लिए परिवर्तन के नारे के साथ जनता की सहानुभूति और वोट दोनों की जुगाड़ करने में लगे है।

‘वोट की राजनीति’ और ‘वोट पर राजनीति’ सालों से इस देश में होती आई रही है और आगे भी बदस्तूर जारी रहेगी। वोट पाने के लिए हमारे नेताजी कई बार तो ऐसे काम भी कर लेते हैं। जिनकी अपेक्षा करना उनसे नामुमकिन होता है। खैर छोडि़ए इन बातों को और जानिए अपने क्षेत्र के नेताजी के बारे में कुछ जरूरी बातें –
हम बात करते हैं रतलाम विधानसभा क्षेत्र की, जिसके अंर्तगत रतलाम ग्रामीण, रतलाम शहरी, सैलाना, जावरा व आलोट क्षेत्र आते हैं। जिनमें लगभग 43 उम्मीद्वार विधायक की कुर्सी पाने के लिए मैदान में उतरे हैं। रतलाम के अंर्तगत आने वाली रतलाम ग्रामीण व सैलाना सीट एसटी तथा सैलाना सीट एससी के लिए आरक्षित है।

रतलाम शहरी क्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबला :
यदि हम रतलाम शहरी क्षेत्र की बात करे तो यहाँ भाजपा से चेतन्य कुमार काश्यप पहली बार चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। मीडिया व राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय उद्योगपति चेतन्य काश्यप रतलाम शहर के लिए एक जाना-पहचाना नाम है। वहीं कांग्रेस ने भाजपा को टक्कर देने के लिए अदिति दवेसर को एक नया युवा चेहरे के रूप में अपना उम्मीद्वार बनाया है। अदिति का न तो लंबा राजनीतिक अनुभव है और न ही कोई खासी उपलब्धियाँ। 
       वहीं रतलाम शहर में ‍इस त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा और कांग्रेस को कड़ी टक्कर देने के लिए मैदान में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में निर्दलीय विधायक पारस सकलेचा ‘दादा’ मैदान में उतरे हैं। शहर के शिक्षित युवाओं का जनसर्मथन हासिल करने वाले ‘दादा’ की खासियत ही उनके पास पाए जाने वाले अपनी उपलब्धियों के व अपने प्रतिद्वंदियों की खामियों के रिकार्ड है। जिनके बूते पर दादा दम खम से आम सभाएँ कर रतलाम की जनता को अपने पक्ष में वोट देने हेतु प्रलोभित कर रहे हैं। यही नहीं सोशल मीडिया में दादा की अच्छी पूछ-परख भी शिक्षित वर्ग के वोट जुगाड़ने में उनके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।

अब बात करते हैं रतलाम शहरी क्षेत्र से अपनी किस्मत आजमाने वाले अन्य उम्मीद्वारों की। इन उम्मीद्वारों में ‍शेर मोहम्मद, फारूख खान, मोहम्मद साजिद कुरैशी, विनय कुमार पण्डया, मोहम्मद इमरान, सैय्यद अनवर अली, सोनलाल व्यास आदि निर्दलीय उम्मीद्वार के रूप में विधायक पद हेतु अपनी दावेदारी मजबूत कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर सपा से राधेश्याम पँवार, एनसीपी से शंकरलाल और बसपा से विनोद कटारिया भी इस चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।

राजेश के स्थान पर अदिति ने बिगाड़ी गणित :
आयुर्वेदिक, हौम्योपथी, नर्सिंग आदि कॉलेजों की स्थापना के साथ ही चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी एक मजबूत पहचान बनाने वाले डॉ. राजेश शर्मा का नाम एक उभरते युवा नेता के रूप में शहर में अपनी पहचान बना चुका था। शहर कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अपनी सक्रिय सेवाएँ देने तथा कांग्रेस के दिग्गजों से नजदीकी के कारण विधानसभा चुनाव में डॉ. राजेश शर्मा का टिकिट फाईनल होने की अटकते काफी पहले से लगाई जा रही थी।
जब विधायक की दौड़ के लिए कांग्रेस की ओर से डॉ. शर्मा के टिकिट की औपचारिक घोषणा हुई। तब शहरवासियों को लगा कि कांग्रेस के इस युवा चेहरे में एक नई ऊर्जा व उत्साह है, जिसके बूते पर इनसे शहर के विकास की उम्मीदें करना ला‍जमी होगा परंतु ऐन वक्त पर कांग्रेस ने डॉ. राजेश के रूप में फेंके अपने पाँसे को वापस लिया। उसके बाद नई चाल चलते हुए ऐन वक्त पर कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर देने वाले इस उम्मीद्वार का नाम वापस लेकर ऐक ऐसा नाम घोषित किया। जिनसे शहर की जनता लगभग अपरिचित ही थी और है भी। डॉ. राजेश की जगह अदिति का नाम सामने आने पर न केवल शहर के आमजन में बल्कि कांग्रेस के अपने खेमे में भीतरी तौर पर सन्नाटा, खामोशी व असंतोष फैल गया। डॉ. राजेश के विकल्प के रूप में जब कांग्रेस के पास अन्य बेहतरीन विकल्प थे तब अदिति ही क्यों? इस प्रश्न का कोई पुख्ता जवाब शायद कांग्रेस के पास ही नहीं है। अब देखना यह है कि क्या अदिति ‘कमल’ की सुरक्षित सीट कहे जाने वाले रतलाम शहरी क्षेत्र में अपने ‘पंजे’ की छाप लगा पाएगी या नहीं।   

ऐन वक्त पर दल-बदल, आखिर क्यों ? :
पेशे से नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ. अरूण पुरोहित भी पिछले दो-तीन वर्षों से चिकित्सा के साथ ही समाजसेवा के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाने में जुटे थे। हालांकि अपने पेशे की अनदेखी और समाजसेवा की पूछ परख एक चिकित्सक क्यों कर रहा था? आखिर क्यों वह ब्राह्मण वोटरों के बीच अपनी पहचान बनाने में, समाजसेवा के कार्यों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में व सुर्खियाँ बटोरने में लगे हुए थे? इन सब सवालों के जवाब विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में डॉ. पुरोहित की उम्मीद्वारी के रूप में सामने आए। पर ऐन वक्त पर इस कहानी में भी एक मजेदार ट्विस्ट आया। सिलिंग फेन के चुनावी चिन्ह के साथ निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपना नामांकन भरने वाले 51 वर्षीय डॉ. पुरोहित ने मतदान से पाँच दिन पहले अचानक अपना फैसला बदल लिया और 20 नवंबर, बुधवार को हुई मुख्यमंत्री की आम सभा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। भाजपा की सभा में उनकी उपस्थिति के साथ ही उनके भाजपा में शामिल होने की औपचारिक घोषणा भी हो गई। वाह रे टिकट की माया और उस पर ब्रांड का साया। जिसके प्रलोभन से कोई भी न बच पाया।    

कानाफूसी कॉर्नर :
रतलाम शहरी क्षेत्र के हाल का जायजा लेने के बाद मैं आपको लिए चलती हूँ कानाफूसी कॉर्नर पर। जहाँ से खबर है कि इस बार शहर की जनता पर निर्दलीय प्रत्याशी दादा का जादू चलता थोड़ा कम ही नजर आता है क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में दादा ने जनता का विश्वास जीतकर और हिम्मत सेठ के वोट काटकर अपने तिकड़मी दिमाग का कमाल तो दिखाया था परंतु शिक्षित व समझदार होने के बावजूद भी विधायक के रूप में शहर के विकास के लिए दादा की कोई उल्लेखनीय उपलब्धियाँ नहीं रही। जिसके कारण इस बार जनता उन्हें दगा दे सकती है। लेकिन प्रचार के नए व अजीबो गरीब तरीके तथा सोशल मीडिया में दादा की उपस्थिति इस चुनावी समीकरण को पलट भी सकती है।   
वहीं यदि हम भाजपा प्रत्याशी काश्यप जी बात करें तो दादा से नाराज मुस्लिम वोटर इस बार काश्यप जी का साथ दे सकते हैं। चेतना खेल मेला, माहे रमज़ान, अहिंसा ग्राम आदि के साथ ही मीडिया व राजनीति के क्षेत्र में काश्यप जी की उच्च स्तर पर पैठ इस चुनाव में उन्हें जीत का सेहरा पहना सकती है। वहीं दूसरी ओर खामियों के रूप में रतलाम से दूर मुंबई व दिल्ली की दौड़ काश्यप जी की अनदेखी का कारण भी बन सकती है। इसी के साथ ही हिम्मत सेठ के विकल्प व नए नाम के रूप में सामने आए काश्यप जी के साथ रतलाम के जैन समुदाय के ‘सेठ’ सर्मथक खेमे से वोट के मामले में दगा करने के आसारों से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है।
पहले तकरार, फिर इन्कार, फिर अनमने मन से शहर में एक ही मंच पर शिवराज, काश्यप व सेठ का लोगों को एकबारगी तो कानाफूसी करने पर मजबूर कर ही देता है। पर फिर भी खामियाँ कम, खूबियाँ अधिक और बदलाव की उम्मीद के साथ शहर के वोटर इस बार काश्यप जी का साथ दे सकते हैं।

यहाँ हम केवल इस चुनावी महासंग्राम में हार-जीत की संभावनाओं पर अटकले लगा सकते हैं परंतु असली फैसला तो जनता को ही करना है। जो आगामी 25 नवंबर को अपना कीमती वोट देकर इन नेताओं की किस्मत का सितारा उदय या अस्त कर सकती है। कृपया अपना कीमती वोट जरूर दे और सोच-समझकर अपने नेता का चयन करे।   
- गायत्री 

Comments

जनमेजय said…
अन्दरूनी कशमकश और कमियों-खूबियों पर अच्छी निगाह दौड़ाई आपने, और एक पहलू आयाराम-गयाराम का भी है। चुनाव का मौसम आते ही ऐसा लगता है जैसे रेल के किसी स्टेशन के नज़दीक आने पर पटरियाँ आपस में गड्‍ड-मड्ड होने लगती हैं। कुछ पता ही नहीं लग रहा कि कौन किस आइडियोलॉजी का था और अचानक टिकट की आस में किसी और आइडियोलॉजी वाली पार्टी की शरण में चला गया... ज़रा इस पर भी लेखनी का ध्यान केन्द्रित कीजिये, बड़ा आनन्द रहेगा पढ़ने में।
रतलाम शहरी क्षेत्र त्रिकोणीय मुकाबला.........अदिति दवेसर...को शामिल नही किया .......अच्छा लेख
आपके मार्गदर्शन व टिप्पणी के लिए धन्यवाद मिस्टर जय। मैं आपके सुझाव पर जरूर गौर करूँगी । पुनश्च धन्यवाद ...
शुक्रिया संजय जी, हालांकि अदिति हमारे शहर में बहुत जाना-पहचाना नाम नहीं है परंतु फिर भी मैं आपको अदिति दवेसर के बारे में जानकारी जुटाकर कुछ अच्छा लिखने का प्रयास करूँगी।

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