डर का अंत हो .....
हर रात के खत्म होने के बाद
अलसुबह से मन में दस्तक देता है डर
हर आहट पर चौकन्नी हो जाती है निगाहें
और करता है जिंदगी को खत्म करने का मन
होते है दुनिया में कुछ लोग ऐसे
जो खेलते है खुशियों और मुस्कुराहटों से
करते हैं जिस्म के सौदे
और गुर्र्राते है अपने थोथे दावों पर
किसी को डराकर ये लेते हैं मजे
और तोड़ते है लोगों के भरोसे
दर्द देने में इन्हें मजा आता है
सिसकियों में कराहती हर आह से मन इनका ललचाता है
पर कब तक .....
....
डर, सन्नाटा और खामोशी की भी उम्र होती है
छटपटाते मन में अब हर दुआ, बददुआ बनकर रोती है
जब मच जाती है दर्द की अति से हाहाकार
तब दिखाता है ईश्वर भी अपना चमत्कार
पापी को मिलती है पाप की सजा
और साथ ही सजा को भोगता है उसका पूरा परिवार।
- गायत्री
अलसुबह से मन में दस्तक देता है डर
हर आहट पर चौकन्नी हो जाती है निगाहें
और करता है जिंदगी को खत्म करने का मन
होते है दुनिया में कुछ लोग ऐसे
जो खेलते है खुशियों और मुस्कुराहटों से
करते हैं जिस्म के सौदे
और गुर्र्राते है अपने थोथे दावों पर
किसी को डराकर ये लेते हैं मजे
और तोड़ते है लोगों के भरोसे
दर्द देने में इन्हें मजा आता है
सिसकियों में कराहती हर आह से मन इनका ललचाता है
पर कब तक .....
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डर, सन्नाटा और खामोशी की भी उम्र होती है
छटपटाते मन में अब हर दुआ, बददुआ बनकर रोती है
जब मच जाती है दर्द की अति से हाहाकार
तब दिखाता है ईश्वर भी अपना चमत्कार
पापी को मिलती है पाप की सजा
और साथ ही सजा को भोगता है उसका पूरा परिवार।
- गायत्री
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