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खांपाओं की महफिल जमी रतलाम में

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कवि सम्मेलन मतलब देर रात तक गुदगुदाने वाली कविताओं व शेरो-शायरी की महफिल। जिसका सुरूर चाँदनी रात के जवाँ होने के साथ ही चढ़ने लगता है। कविता के रसिक भी अपने व्यापार-व्यवसाय का सारा काम निपटाकर, भरपेट खाना खाकर फुरसती बन कवि सम्मेलन का लुत्फ उठाने आ जाते हैं। सच कहा जाए तो कवि सम्मेलन हँसी-ठहाकों की वह पोटली है, जिसके खुलते ही हर कोई हँस-हँस कर लोटपोट हो जाता है। यहाँ हँसी के वार से भावनाओं के तारों को छेड़ा जाता है और तुकबंदी से कविता में लय पैदा कर उसे गीत सा मधुर बनाया जाता है। 27 अप्रैल 2013, शनिवार को रतलाम में भी एक कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसकी पृष्ठभूमि बहुत कुछ मूर्ख कवि सम्मेलन के नाम से मशहूर ‘टेपा सम्मेलन’ की तरह ही थी। हाँलाकि ‘खांपा सम्मेलन’ और टेपा सम्मेलन में तुलना करना गलत होगा परंतु खांपा सम्मेलन की बढ़ती लोकप्रियता व उसमें आने वाले ब्रांडेड कवियों के कारण रतलाम में अपनी तरह का यह एक अच्छा आयोजन रहता है। खांपा के मंच पर मालवी कवि नरहरि पटेल जी की उपस्थिति मंच की शोभा में चार चाँद लगा रही थी वहीं उदयपुर की कवि रेनु सिरोया सारे कवियों के बीच किसी नगिने स