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रतलाम में ‘मालवी दिवस’ रो आयोजन

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घणा दन वई गिया थमारसे वात करया। म्हने नगे है कि थे म्हारसे नाराज वोगा। पण कदी तक थे ने मैं मुण्डा फुलई ने बैठ्या रांगा। भई, अपणी तो आदत है कि जो भी केणो ने करनो, ऊ मुण्डा हामे करनो। घणा दन से आपरो ने म्हारो राम-राम नी वियो। अणी वस्ते मैं म्हारा ब्लॉग ने फेसबुक से जुडि़या थमी हगरा लोक्का से हाथ जोड़ी ने माफी माँगू। चालो अब थे भी मने माफ करी ने म्हारो साथ दो ने टेम-टेम पे म्हारा लिखिया पे अपणी-अपणी वात रखो। उज्जैन में रेवा वारा म्हारा मारसाब डॉ. शैलेन्द्र शर्मा सर भी मने कदी से कई रिया था कि नानी, तू ब्लॉग पे फेर से लिखणों चालू कर। नी लिखेगा तो कई करेगा। लिखिणो ई ज तो थारी पेचाण है। देखों भई, अपणा मारसाब ए वात तो हाची ज की है। दोष तो म्हारोज है। लिखवा से भी म्हारोज भलो वेणों है। अणी से म्हारा दिमाग में चार वाता ज्यादा आवेगा, जणीसे म्हारों ज्ञान रो ईज भंडार भरेगा। चालो भई, अब अपण आवा काम री वात पे। दो-तीन दन पेला असो संयोग बैठ्यो कि उज्जैन रा बाद मालवाचंल रा ‘रतलाम’ में ‘हल्ला-गुल्ला साहित्य मंच’ हे ‘मालवी दिवस’ रो आयोजन कर्यो। म्हारा मारसाब शैलेन्द्र जी रा केवा पे मैं भी वण