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जॉब करें या बिजनेस

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कक्षा 10 वीं के बाद से ही अपने करियर को लेकर स्टूडेंट्स में संशय की स्थिति बनी ही रहती है। कई बार पढ़ाई अच्छी होने के कारण भी अच्छी जॉब और सैलेरी नहीं मिल पाती है और कई बार फैमिली बिजनेस होने के बाद भी युवा उस बिजनेस के भविष्य को लेकर आश्वस्त नहीं होता है। ऐसे में युवा अपने करियर को लेकर तनाव व संशय की स्थिति में फँसा रहता है। लेकिन यह स्थिति तब आती है। जब हम प्रापर प्लानिंग किए बगैर ही कोई भी काम शुरू कर देते हैं। जॉब या बिजनेस यही विषय लेकर मैंने चर्चा की प्रोटॉन बिजनेस स्कूल के स्टूडेंट्स से। जिनकी प्लॉनिंग सुनकर मैं स्वयं हैरान हो गई। मेरे द्वारा की गई इस स्टोरी का प्रकाशन 18 नवंबर 2010 के नईदुनिया युवा में हुआ था।  

पोस्टरों से घिरा मेरा शहर

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दोस्तों, जब कोई शहर महानगर की शक्ल तब्दील करता जाता है। तब कहीं न कही उसमें गंदगी के ढ़ेर, फेक्ट्रियों के बदबूदार पानी, जहरीला काला धुँआ छोड़ते वाहन और इधर-उधर जहाँ जगह मिले वहाँ पैर पसारते पोस्टर यदा-कदा देखने को मिल ही जाते हैं। मेरा शहर इंदौर भी एक ऐसा ही शहर है, जो अब विकास, आबादी और गंदगी के मामले में मिनी मुंबई बन रहा है। रिगल ब्रिज हो या पलासिया चौराहा, कलेक्टोरेट हो या टॉवर चौराहा हर जगह बड़े बड़े पोस्टर मुँह खोलकर हमारे बौनेपन का मजाक उड़ाकर अपने विदेशी ब्रांडों पर इठलाते नजर आ जाते हैं। पोस्टरों से लिपटे इस शहर के बारे में आज के युवा क्या सोचते हैं। इस विषय पर मैंने एक स्टोरी की थी। युवाओं के विचारों पर केंद्रित एक स्टोरी, जिसका प्रकाशन 18 नवंबर 2010 के नईदुनिया युवा के प्रथम पृष्ठ पर हुआ था। कृपया आप भी इस स्टोरी को पढ़े और मुझे अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएँ।